Hi Friends Here You Can Read Best Poem In Hindi, Life Poem In Hindi, Hindi Poems, हिंदी पोयम्स, Motivational Poem In Hindi.
{1} Poem In Hindi
कोरा कागज़ सा
मेरा जीवन ,
दो शब्द किसी ने
लिखे होते।
बदलाव।
जब जब सच कहा मैंने, झूठ समझा लोगों ने।
जाने क्यों झूठ को, सच समझ लेते हैं लोग।।
टिमटिम टिमटिम करते जो तारे,
गुम हो गए आज हैं सारे,
जगमग जगमग दीप जले हैं,
प्रकाश पर्व घर आँगन सारे,
बच्चे सभी खुशियों से चहकें,
घर में दीवाली आज हमारे,
मिठाई और खील बताशे,
खूब हैं बांटे ,पास हमारे,
टिमटिम करती है रोशन सी कतारें,
अंधिआरा काटें फिर भी न हारें,
धूम धाम है पटाखों की बहुत,
शोर बहुत है, फिर भी स्वीकारें,
पावन पर्व आज है अपना,
पूजा करें पण प्राण सवारें,
– कमलप्रीत सिंह.
दिवाली रोज मनाएं
फूलझड़ी फूल बिखेरे
चकरी चक्कर खाए
अनार उछला आसमान तक
रस्सी-बम धमकाए
सांप की गोली हो गई लम्बी
रेल धागे पर दौड़ लगाए
आग लगाओ रॉकेट को तो
वो दुनिया नाप आए
टिकड़ी के संग छोटे-मोटे
बम बच्चों को भाए
ऐसा लगता है दिवाली
हम तुम रोज मनाएं।
पर्व है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे,
हारेगी हर बार अंधियारे की घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना व्यर्थ है,
आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए!!
झिलमिल रोशनी में निवेदित अविरल शुभकामना
आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना!!!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
आँख हमारी नभ-मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
– हरिवंशराय बच्चन.
दुनिया ए तसव्वुर में रहने वालो।
हक़ीक़त की ज़मीं पर कदम रखना सीखो।
कब तलक खौफ़जदा रहोगे हालात से
हालात का सामना करना सीखो।।
आसमां तूं क्यों बिगड़ा है,
किस बात से ख़फा है।
लगता है नादान इंसा ने,
की तुझसे कोई जफ़ा है।।
क्यों सोचता है हजारों नेमतें,
इंसान को बख़्शी हैं।
क्यूं भूला है ए आसमां,
इंसां ने किस से की वफ़ा है।।
स्वरचित।
तू मायूस न हो बंदे,
तेरा वक़्त भी आएगा।
मंजिल पर रख नज़र,
मंजिल को पाएगा।।
मेरी शायरी।
मेरे दिल का दश्त मुद्दत से प्यासा है।
हाथों से दामन ए सब्र छूट रहा है।।
दश्त: जंगल।
– Om Prakash Sharma.
हम परिंदों का भी,
कभी वक़्त हुआ करता था,
जब हम भी घरों में पाले जाते थे।
टी वी, रेडियो, मोबाइल ,सिनेमा,
तब नहीं होते थे,
इंसानों का दिल हम ही बहलाते थे।।
बच्चों की तरह हमारे भी नाम रखे जाते थे,
बड़े उत्साह व उल्लास से,
हमारे भी जन्मदिन मनाए जाते थे।
हम परिंदों के बीच,
विभिन्न प्रकार की खेल प्रतियोगिताएं,
आयोजित की जाती थी।
विजयी प्रतियोगी मालिक को,
भारी भरकम राशि,
पारितोषिक स्वरूप दी जाती थी।।
लेकिन — वक़्त बदला,
बदलते वक़्त के साथ साथ,
हमारा नसीब भी परिवर्तित हो गया।
इंसान ने न केवल हमारे घोंसले तोडे़
घरों में हमारा प्रवेश भी वर्जित हो गया।
आज के बच्चे न हमें जानते हैं,
न हमें पहचानते हैं,
अब भी वक़्त है,
संभल जाओ ऐ इंसानों,
वरना एक दिन तुम्हारे ये मित्र,
धरा से ओझल हो जाएंगे,
विलुप्त जीव कहलाएंगे, विलुप्त जीव कहलाएंगे।।
– Om Prakash Sharma.
{2} Poem in Hindi Motivational
ख़्वाहिश।
जब बोलता नहीं था,बोलने की ख्वाहिश थी।
आजकल, सन्नाटा ढूंढता ,फिर रहा हूं मैं।
ग़म शायरी।
लोग मुझे दीवाना कहते हैं।
नहीं जानते ग़म का मारा हुआ हूं मैं।।
इक बिखराव है
मेरे अंदर
जो मुझे जीने नहीं देता…
इक जुड़ाव है तुमसे
जिससे मैं …
भाग नहीं सकती …
तुमसे बंधा
एक धागा है जो
मुझे तुमसे जोड़े रखता है…
जैसे के जुड़ाहो…
वो फूल… जो पतझड़ के…
आने से झड़ तो गया…
पर टूटकर ना गिरा…
जुदा न हो पाया…
अपने वजूदसे…..!!
Poem In Hindi Lyrics
दस्तक।
ये शिकस्त है उसकी या उसका कोई फरेब।
आज फिर उसने मेरे दर पर दस्तक दी है ।।
मेरी शायरी।
कुबूल इस बारगह में हर इल्तिज़ा होती गई।
ज़रा गुबार था कल तक आफ़ताब हो गया।।
विजय दशमी साप्रासंगिक व्याख्या है,
असत्य पर सत्य की,
बुराई पर अच्छाई की विजय की।
विजय दशमी साप्रासंगिक व्याख्या है,
मर्यादाओं को निभाने की,
नैतिक मूल्यों की स्थापना की।
अपितु राम और रावण तब भी थे,
आज भी हैं, केवल बदली हैं तो परिस्थितियां।
राम-रावण संग्राम तो कभी समाप्त हुआ ही नहीं,
और न होगा, चलता रहेगा जब तक इस धरा पर,
मानव रहेगा।।
बहुत याद आ रहा है
जाने क्यों ?
गांव में नदी किनारे
मिट्टी से बना
वो छोटा सा घर
जिसमें मैं बचपन में
मां-बाप, भाई-बहनों
व दादा-दादी के साथ
रहा करता था।
बहुत याद आ रहा है
जाने क्यों?
गांव में मक्का का वो खेत
जिसमें बैठ कर
दोस्तों के संग
कच्चे दूधिया भुट्टों को
पेट भर खाया करता था।
बहुत याद आ रहा है
जाने क्यों?
गांव का वो जोहड़
जिसमें दोस्तों संग
घंटों नहाया करता था
वो मैदान जिसमें
गुल्ली-डंडा का खेल खेला करता था।
वो कच्ची गलियों में भटकना
दस पैसे में किराए पर लिया
साइकिल दौड़ाना।
पर आज
वर्षों बाद शहर से लौटने पर
मैं- ढूंढता रहा, ढूंढता रहा
वो मेरा बचपन
वो मेरा-अपना गांव
लेकिन -मुझे मेरा वो गांव
कहीं नहीं मिला।
शायद-
समय के साथ साथ
मेरा वो गांव कहीं खो गया है
या वो भी शहर हो गया है।।
– Om Prakash Sharma.
जलता है दिल,
मगर रोशनी नहीं।
लहू जिस्म में मेरे,
पानी हो गया है।।
स्वरचित।
बदौलत शायरी।
ज़लील ओ ख़्वार ओ रुसवा,तुम्हारी बदौलत हूं।
मैं आज जैसा हूं, जो भी हूं, तुम्हारी बदौलत हूं।।
{3} Short Poem In Hindi
बहुत मुश्किल से भुलाया था जिसको।
वो क्यूं बेतरह मुझको याद आ रहा है।।
शाम के धुंधलके में वहां कौन खड़ा है।
इशारा कर के जो मुझको बुला रहा है।।
विजय निश्चित मिलेगी।
सच है, परिस्थितियां आज अत्यन्त जटिल हैं
मानव मन अत्यन्त विचलित है,व्यथित है।
आसुरी शक्तियों का प्रभाव
निरंतर बढ़ता जा रहा है ।
पूर्व की भांति मानव
असुरक्षित होता जा रहा है।।
कालांतर में भी आसुरी शक्तियां मानवता को
यातनाएं देती रही हैं
आसुरी शक्तियों व दैवी शक्तियों में
निरंतर प्रतिद्वंदिताएं चलती रही हैं।
लिकिन
विजय अंततः दैवी शक्तियों को ही मिली।
रावण और कंस आसुरी शक्तियों के और
राम और कृष्ण दैवी शक्तियों के प्रतीक ही तो हैं
अतः मानव को आज पुनः
निराशा व हताशा से बाहर निकलना होगा
अदम्य साहस से इन विध्वंसक शक्तियों का
सामना करना होगा।
विजय निश्चित मिलेगी, निश्चित मिलेगी।
New Hindi Poem
नाउम्मीदी में भी उम्मीद का दामन छोड़ा नहीं मैंने।
ग़म कितने भी आए ज़िन्दगी में मुस्कुराता रहा मैं।।
वह सोचता हैं,
मैं देखता हूं,
बारिश की बूंदों को।
नहीं जानता हर बूंद में है,
मेरे महबूब का चेहरा।।
Life Poem In Hindi
एक उमर गुजर जाती है खुशी की तलाश में।
एक पल ख़ुश दूसरे पल रंजीदां होता है आदमी।।
झूठ बोलने के लिए ज़ुबान हिलाना काफी है।
सच कहने के लिए बहुत हौसला चाहिए।।
बड़ा गुमान था अपनी हस्ती पर मुझे।
ठोकरों ने मुझको आदमी बना दिया।।
Poem on Success and hard work in Hindi
विजय निश्चित मिलेगी मुझे।
जीवन,जीत है या हार है,
निर्णय मुझे स्वीकार है।
अपितु, रुकूंगा मैं नहीं,
किंचित झुकूंगा मैं नहीं।
विजय निश्चित मिलेगी मुझे।
रेखाओं को मैं नहीं देखता,
उपासक मैं,अनवरत कर्म का।
आडंबरों से सर्वथा मुक्त हूं,
अनुयायी मैं मानव धर्म का।
विजय निश्चित मिलेगी मुझे।
पग-पग बाधाएं आएंगी,
निरंतर मुझको डराएंगी।
मैं आगे बढ़ता जाऊंगा,
कदाचित नहीं घबराऊंगा।
विजय निश्चित मिलेगी मुझे।
दुर्गम बड़ी जीवन डगर,
मानव नहीं अजर अमर।
मंजिल पर है मेरी नज़र,
निश्चित मैं मंज़िल पाऊंगा।
विजय निश्चित मिलेगी मुझे।
विजय निश्चित मिलेगी मुझे।।
– Om Gopal Sharma.
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February 2022.